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Showing posts from 2008

ग़ालिब के मनपसंद शेर

अब रचनात्मकता के कुछ पढ़ते आकाल के कारण कुछ मौलिक की जगह में अपने अपने पसंदीदा लेखको और शायरों के कुछ अच्छी रचनाये प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा हु ॥ पहेली किस्त के रूप में में अपने पसंदीदा शायर जनाब मिर्जा ग़ालिब के कुछ मेरे पसंदीदा शेर पोस्ट कर रहा हु। क्योंकि कहते है ना 'हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे कहते हैं पर कहते है की ग़ालिब का अंदाज़-ए-बयाँ और ही हैं' १। 'न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता, तो ख़ुदा होता डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता'! २। 'ग़ालिब वज़ीफ़ाख़्वार हो दो शाह को दुआ वो दिन गए कि कहते थे नौकर नहीं हूँ मैं' ३। चिपक रहा है बदन पर, लहू से पैराहन, हमारी जेब को अब हाजते-रफू क्या है। ४। 'हुई मुद्दत के 'ग़ालिब' मर गया, पर याद आता है वो हर बात पर कहना के यूँ होता तो क्या होता' ५। घर जब बना लिया है तेरे दर पर कहे बग़ैर जानेगा तू भी अब न मेरा घर कहे बग़ैर ६। मोहब्बत में नही है है फर्क जीने मरने का , उसी को देख कर जीते है जिस काफिर पर दम निकले ७। हर एक बात पर कहते हो तुम की तू क्या है! तुम ही कहो की ये अंदाजे गुफात

ब्रेकिंग न्यूज़

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आतंकवादी हमला हुआ मरे ढेर से लोग ,टीवी वाले लाशो पर करे शोर पर शोर , करे शोर पर शोर खून की खेले होली ,आतंकी के साथ मारदो इन को भी एक एक गोली सब से पहेले सब से तेज़ , करे ये हर समय बहस देश हित का सोचे बिना ये करे भावनाओं को कैश लोगो की मौत को बना कर ब्रेकिंग न्यूज़ , बस चले तो ये लाशो से भी मांगे व्यूस , लाशो से भी मांगे व्यूस, इनके लिए है ये मेगा इवेंट, जम गए फौज के पीछे लगा कर ये तम्बू टेंट और देश के नेता है , लगे है राजनीती करने नेता करे बाते बाते पर कोई ना जाए बॉर्डर पर मरने कोई न जाए बॉर्डर पर मरने , देश में ही करे ये भेद हिंदू को मुस्लिम से लड़ा कर करें एक थाली में छेद सो रहे ग्रह मंत्री , मन मोहन का भाषण भी मौन , केवल कहने भर से होता क्या है , प्रश्न ये की करे कुछ कौन ?

अपने अपने मदिरालय

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला, 'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला, अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ - 'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।' क्या समझे , नही नही में कोई प्रवचन नही दे रहा हु ,, की बच्चन साहब का कहना ये है की अगर जीवन में एक राह चलोगे के तो आपने जीवन के सपने को पा सकते है पर में तो बता रहा हु की शयद उस समय भी परिस्थितिया कुछ ऐसी होंगी जैसी की आज है। गाँधी के इस देश में सारी राहे किसी ना किसी मधुशाला में ही जा कर ख़तम होती है, चारो और मधुशालाये ही है। चाहे वों गन्ने के रस की ही क्यो ना हो पर मधुशाला तो है, कहेने का मतलब ये है की हर व्यक्ति कही भी जाए प्हुचाता मधुशाला ही है, चलो पॉइंट पर आता हु, शायद आप बोलेंगे की पागल हो गया है ये आदमी तो ,, पर नही लोग सब और मस्त है , क्या हो रहा है चारो और कोई मतलब नही बस अपन घर पहुँच जाए काफ़ी है .....

भारत निर्माण

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भारत निर्माण आइये में आपको भारत निर्माण की विधि बताता हूँ , ये ज़्यादा कठिन नही है , सब से पहेले एक अच्छा सा सुंदर सा देश जो की वास्तव में ज़मीन का एक टुकडा होता है जिसे की लोग अपनी भावना अनुसार मर्ताभूमि भी कहेते है, चलिए में आप को विधि बनता हु , हा वों जो ज़मीन का टुकडा है उसके २ या ३ टुकड़े कर दी जिए , धर्म के आधार पर , एक को पाकिस्तान नाम दीजिये और दुसरे को हिन्दुस्तान , अब जो साइड में पाकिस्तान है उसे भाषा के आधार पर दो भाग में बात दीजिये , बंगाली मुसलमान वाला बांग्लादेश और बाकी बचा उर्दू बोलने वाला पकिस्तान, अब ये पाकिस्तान भी फलतीउ नही है , इसे साइड में रख दीजिये ये बाद में बाजार लगाने में काम आएगा , हां अब जो आपका जो तथाकथित धर्म निरपेक्ष हिस्सा था, हिन्दुस्तान ... इससे भी भाषा से बात लीजिये , २८ भाषायें , २८ हिस्से , फ़िर बच्चे हुए हर भाग को और लोगो को जात पात ,धर्म विधर्म , बड़े छोटे के आधार पर बाटे॥ अब आपके पास कई सारे छोटे छोटे हिस्से है , अभी भी ये सब कच्चा है इससे नफरत की आग पर पकाए और पकने दे और पकाने वाले बावर्ची जिसे नेता बोलते है को सोये रहेने दे , उससे वैसे भी कोई मतलब

अकेला मन

अकेलापन , होता क्या है . जब कोई साथ हो तो भी तो अकेले हम है , साथ और अपनेपन से केवल एक अहसास होता है , की कोई है जो परवाह करता है कोई है जो आपके सुख और दुःख बांटना चाहता है , सच्चे साथ में इसी लिए एक विश्वास होता , निस्वार्थ होने का विश्वास , भीतर देखो , कोई है , कोई नही सिर्फ़ तुम हो , शायद वो भी नही , बात यह है की अगर समझो तो सच्चा साथी तो मन है , मन ही साथी जो दुःख में अकेलेपन का अहसास है करता और सुख में साथ का और अपने पन का अहसास करता है , मन ही सारे प्रश्न है करता , मन ही उनको पूरे करता , मन नियंरित हो तो जीवन ऐकाग्र्य अश्व के जैसे बढ़ता , मन रुलाता मन हंसाता , मन ही सारे मेल करता , मन है विश्वास , मन है कनक , जो समजता वाही आगे बढ़ता जय पारा जय , लाभ और हानि , मन बनाये सारी कहानी , मन है भोला मन है चंचल , मन निर्मल ये संतो की वाणी मन ही राम , मन ही कुरान , मन ही सूरज मन ही चाँद , धनसंपदा से अधिक संपन्न वो जिस का मन प्रसन्नता की खान , मन की trishna मन की शान्ति लाख धन से ना मिलती , मन करता , मन है कर्म का उद्गम ,मन से ही मुक्ति है मिलती

मेला

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हर चहरे पर चहरा है , हर हँसी पर में छुपी उदासी है हर साथी का साथ है सौदा जिसकी कीमत खासी है साथ केवल पीड़ा देता है पर ये दुनिया का मेला है मेले की हर बात निराली उसमे कई खेल तमाशे है, जीवन भी मेले जैसा है, पर इसके खेल सताते है दुखी सा है मन , अजब सा परेशान है तन मन थोडी सी है कुछ हल चल , पर खोया है वो बीता अपनापन आसपास बहौत है लोग पर , नज़र ना आए साथ है कौन , खोये अपने भी भीड़ में , अनजान हो गए सब है मौन, अधुरा , अनमना सा , कुछ खाली कोई कोना इस मन में , दे रहा टीस , पीड़ा भी , कुछ पानी भी आया इन आँखों में , पता नही ये पानी है या आंसू , फर्क क्या है दोनों में , शायद पीछे कोई पीड़ा तो है पर पता नही वो क्या है और नही पता क्यो है सब ऐसा , लगता बिखरा बिखरा सा , खोया में हु , या खो गए वो जो अहसास देते थे कुछ अपना सा, जिस पहेचानी दुनिया जिसको देखा समझा था , अब उसकी पहेचान भी अनजानी है , अपनी परचाई समझ जिसे रखा साथ में , अब वो मुझसे ही बेगानी है यादें भी तो नही लगती अपनी , वो भी बहौत पुरानी है , और मुझे यादों पर भी शक है , वो सच थी या फ़िर बेमानी है !

यादों की गुत्थी

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बीती यादें .. बहेता पानी, दोनों की एक सी कहानी ,, पानी का अन्नंत प्रवाह है ,यादों को भी यही कहा है पल जो बिता ना वापस आए बीते पल , पल पल तडपाये . चले जाते है वो फ़िर ना आने के लिए , पीछे रह जाए सब , सताने के लिए ॥ काली परछाई जैसे साए , यादों की पहेचान बताये .. अच्छी मीठी कड़वी यादे , खट्टी इमली जैसी बातें , सतरंगी से इस जीवन सतरंगी ही होती यादें ,, जीवन चक्र बड़ा ही अनिश्चित ,बीते दिनों की पूंजी ही सुरक्षित , पर अवरुद्ध करे ये मार्ग कभी , यादों में डूबे है सभी ,, जैसी पानी बहेता जाए प्रवाह ही उसे अमृत बनाये , वर्तमान की कर पहेचान ,ये भी होगा यादों के समान, जाग ज़रा तू भूत भविष्य की उलझन से , वर्तमान की इस खिड़की में झाँक ज़रा तू सुनहरी अनजान सी दुनिया है परन्तु अनिश्चित में ही निश्चित उलझा है ,

नवजीवन

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आशाये तो मन मे है, कदम सब के मजबूर है आगे इतना चल लिए , अब चलने को मजबूर है , मुड के देखो क्या है छूटा पीछे अपनी राहो मे, किस किस के आंसू निकले , सुन ज़रा उठती आहो मे दुख दिया कितनो को, तडपया और निराश किया, जा शुरू कर नवजीवन फिर से, सबने तुझे माफ किया , भर उमंग सर उठा, आगे ही बढ़ता जा, आने वाले अवरोधो से तू बिना डिगे अब तरता जा ॥

नव रूप

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नई नई भाषा है, नये नये रूप है, इस जग मे उठते हुए, ऐसे कई स्वरूप है मन एक है जान एक है, बाकी मिथ्या और झूट है, इंसानियत को पहचानो वरना, आपस मे ही फुट है, एक समय ऐसा भी होगा, भेद भाव ना होंगी कोई, मानव धर्म एक ही होगा, जैसे माला मे पिरोए मोती

"आखरी" ...फ़सल

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काली बरखा तडपए , किसान देखता रहे जाए, बोए धारा पर दाना वो, बरसात को जब आना हो लेकिन बरखा नही है आती, धरतीपुत्र को धरती दिखलाती, सूखी धरती, मुरझाई कोपल,देख के उसका ह्रदय है विहल दुर्बल हुए चौपाए, दुर्बल है घर के दो पाए सभी , निराशा को भी निराशा दिखलाये ऐसा होता उसका मन अभी खेत, घर को गिरवी रख कर बोई थी उसने शायद यह "आखरी" फसल, ये भी सूखी, अब है दुखी,, नही दिखता उसे कोई हल वैसे तो हिम्मत वाला है, लड़ता है हर स्थिति से विकट, मगर आज वो निराश ऐसा, आनादाता को है अन्न का संकट एक बेल बिका था साल पर , जोता था खुदने ये खेत, पर पिछले वर्ष जैसे इस बार भी हुई सारी आशाऐ रेत सोचे की मेरे आसू इतने बहे, सींचा क्यो नही इनसे खेत, भगवान भी शायद नाराज़ है उससे, सोच रहा है कर ले भेंट

सच्चा होता वही संत सा मन

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दूर शहर मे आकर कुछ उदास खुद को पाकर, खोजता हू खुद को, अकेली पगडंडी पर कही चलकर, खेल, रंग और हँसी ठहाका, क्या मनुष्य केवल इन पर निर्भर, अंतर आत्मा को पहचानने मे क्यो संकोच होता है प्रतिपल। दूर भागते रहेने की खुद से कोशिश रहेती सबकी समानांतर, समय नही खुद को पहचाने, दुनिए देखे फिर भी खुलकर, रिश्ते नाते, मित्र सखा, जीवन निकले इनमे पल हरपाल तू क्या है, क्या तुझे है करना क्यों पड़े इसमे सब भूलकर। अंधी सी एक दौड़ है ये सब, माया मोह की है ये उलझन, जो इस के मोह से दूर रहे, सच्चा होता वही संत सा मन .

बहौत भूखा हू मे बाबा मुझे कुछ काम तो दो,

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बहौत भूखा हू मे बाबा मुझे कुछ काम तो दो, मे भिकारी नही कम से कम मुझे ग़रीब का नाम तो दो हाथ पाँव मेरे भी है तुम्हारी ही तरह सलामत वोही दो , श्रम से डरता नही मे, पर उसका उचित दाम तो दो आज सँवारा हुआ है भाग्य तुम्हारा ईश्वर का कभी नाम तो लो , कल जीवन का क्या भरोसा जाने कब क्या फिर हो दया, घ्रना है पाप को तरह, मुझ मे भी भगवान है वो, जो देखता सब है,समझ मत तेरे करमो से अंजान है वो हराम है मेरे लए सब तुम्हारे लए आराम है जो , मेरा जीवन जैसे चक्की, चले नही तो पूर्ण-विराम सा हो , बहौत भूखा हू मे बाबा मुझे कुछ काम तो दो

यादों की उलझन

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यादों की उलझन मैने कही पढ़ा था की इंसान हमेशा अतीत मे जीता है, उसमे और सोचने पर मैने कई बाते पाई, और अगर हम ठीक से विचार करे तो बात सही भी है.आज जो हुआ वो चाहे अच्छा हो या बुरा पर कल याद ज़रूर करेंगे, और ज़्यादा पूरनी यादें थोड़ी भीनी की महक देती है और ज़्यादा अच्छी लगती है एक दम पुराने आचार की तरह, हम हमेशा यादों को किसी किताब मे रखे पेज मार्कर की तारक अपने जहाँ मे बसा लेते है, और यही यादे आपके सोचने कॅया तरीका अवरुद्ध करती है, और कभी कभी आपके विकास को भी प्रभावित करती है, ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है.कोई भी व्यक्ति भविष्य का ऐसे नही सोचता पर ये तो कर सक ता है की वर्तमान मे जीए. आज को जीना ही सच्चा जीवन है.किसी ने शायद इसी लए कहा है ""बीती ताही बिसार दे , आगे की सुध ले" इस कहावत को हम केवल बुरे कल के लए लेते है. अच्छे और सुहाने दीनो के लए भी लागू होती है यही बात. ये गीत शायद इसी बारे मे कुछ कहता है... करोगे याद तो, हर बात याद आयेगी गुज़रते वक़्त की, हर मौज ठहर जायेगी करोगे याद तो ...ये चाँद बीते ज़मानों का आईना होगा भटकते अब्र में, चहरा कोई बना उदास राह कोई दास्तां स