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Showing posts from January, 2009

सारे जहाँ से अच्छा-- विचार बड़ा या विचारक

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कभी कभी ऐसा होता है, की कोई विचार किसी विचारक से बड़ा बन जाता है , या कोई रचना रचियता से ज़्यादा महान हो जाती है , कोई की रचना कार का अपना एक जीवन काल होता है और रचना का अपना, रचना कार अपने जीवन कल में अपने मूल विचार से भटक सकता है या फ़िर अपनी विचार धारा परिवर्तित कर सकता है, परन्तु रचना जो होती है वों अपने अलग ही जीवन काल में होती है और काफी समय बाद जब कोई रचनाकार अपनी रचना को देखता है तो वों उस विचार से ही अनजान लगता है जो उसने खुद रचा था, "सारे जहा से अच्छा " जिसे तराना-ए-हिन्द कहा जाता है इसी का एक जीता जगता उदहारण है , इस गीत को प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इक़बाल ने 1905 में लिखा था, और पूरी उमंग से एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सुनाया था , यह ग़ज़ल हिन्दुस्तान की तारीफ़ में लिखी गई है और अलग-अलग सम्प्रदायों के लोगों के बीच भाई-चारे की भावना बढ़ाने को प्रोत्साहित करती है, परन्तु 1905 के बाद इकबाल के विचारो में काफ़ी परिवर्तन आया , और उन्हें भाईचारे की जगह शायद धार्मिक चश्मा लगा लिया और भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार सबसे पहले उठाया। वे जिन्ना के प्रेरणा स्त्र

हिममता और महेनता -- यादो का अल्बम -1

चौकिये नही की ये क्या लिखा है, में अभी आप को समझाता हु, बात है सन १९८७ की, जब में ४-५ साल का था, और सब बच्चो की तरह शरारती था पर अपनी धों में कोय रहेने वाला बच्चा था, हुआ कुछ ऐसा की में सब के सामने अखबार ले कर बैठा, सब को प्रभीवित करने के लिए मेने वों अख़बार पढ़ना शुरू किया, सब से अच्छा फिल्मो वाला पेज लगता था, जहा पर सिनेमा में जो फिल्म लगती थी उनके पोस्टर और समाये रहेते थे , जैसे शोले - शान से -- रोजाना ३ खेल ... में एक केथोलिक स्कूल में था, तो ज़ाहिर था की मेरी हिन्दी पर इतना ध्यान नही दिया जाता था जितना अंग्रेज़ी पर, तो मेने फिल्मो के नाम पढ़ना शुरू ही किए थे की सब मुझ पर हँसना शुरू हो गए, मेरे दिनेश भइया, पापा॥ मुझे लगा मेने क्या गलती की है॥ मेने फ़िर से ज़ोर से पढ़ा ...हिममता और महेनता ॥ हेहेहे ॥ फ़िर से हँसे सब ॥ भइया, बोले क्या पढ़ रहा है , ध्यान से पढ़, मेने पढ़ा ही ममता और महेनता ॥ गलती मेरे नही थी ॥ आप मत हंसिये ,, फ़िल्म का नाम था हिम्मत और महेनत ॥ पर मेरा मात्र ज्ञान मजोर था जैसा जी सब के साथ शयद होता होगा,, पर यादो के पटल पर ये वाली बात आज तक ताज़ा है और याद कर के आज में सब ह

शादी के बाद

(ये केवल एक मज़ाक है॥ :) शादी के बाद शादी के बाद पहले पांच सालों तक पत्नी अपने पति को कैसे बुलाती है, इसकी एक बानगी - पहला साल : जानू ! दूसरा साल : ओ जी ! तीसरा साल : सुनते हो ? चौथा साल : ओ मुन्ने के पापा ! पांचवा साल : कहां मर गए? -सौजंन्य से NDTV

शादी की वजह - मुंशी प्रेमचंद

भाई अब शादी में १ महिना ही बचा है पर बैठे बैठे सोच रहा था की लोग शादी क्यों करते है, कई कारण होते है , पर तभी मेरी नज़र प्रेमचंद के एक व्यंग पर गई जो की इसी बारे में है ,, तो मेरी बक बक की जगह आप ये प्रेमचंद का लेख देखिये जो की ‘जमाना’ पत्रिका के मार्च, १९२७ के अंक से लिया गया है और सोचिये की आज और उस ज़माने में परिस्थितियों में ज़्यादा परिवर्तन नही आया है शादी की वजह यह सवाल टेढ़ा है कि लोग शादी क्यो करते है? औरत और मर्द को प्रकृत्या एक-दूसरे की जरूरत होती है लेकिन मौजूदा हालत मे आम तौर पर शादी की यह सच्ची वजह नही होती बल्कि शादी सभ्य जीवन की एक रस्म-सी हो गई है। बहरलहाल, मैने अक्सर शादीशुदा लोगो से इस बारे मे पूछा तो लोगो ने इतनी तरह के जवाब दिए कि मै दंग रह गया। उन जवाबो को पाठको के मनोरंजन के लिए नीचे लिखा जाता है—एक साहब का तो बयान है कि मेरी शादी बिल्कुल कमसिनी मे हुई और उसकी जिम्मेदारी पूरी तरह मेरे मां-बाप पर है। दूसरे साहब को अपनी खूबसूरती पर बड़ा नाज है। उनका ख्याल है कि उनकी शादी उनके सुन्दर रूप की बदौलत हुई। तीसरे साहब फरमाते है कि मेरे पड़ोस मे एक मुंशी साहब रहते थे जिनके ए

यादो की गुत्थी-मेमेंटो

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यादो की गुत्थी-मेमेंटो पिछले हफ्ते ग़ज़नी के प्रभाव से मेने उसकी प्रेरणा स्त्रोत मेमेंटो देख ली...और लगा तार २ बार देखी क्यो की वो बनी ही कुछ ऐसे थी॥और शायद मेरे जीवन मे जहा तक मुझे याद है ये सबसे ज़्यादा इंटेलिजेंट मूवी है... सारे सीन उल्टे(chronologically) है, और साथ ही समानांतर रूप से कुछ श्याम श्वत सीन भी च्लते रहेते है जो की सीधे है,, और ये जो उल्टे सीन है ये श्यद १०-१२ मीं का एक है और एक घटना होती है फिर आप अगले सीन मे देखते है की वो घटना क्यो हुई, अतः एक रहस्य बना रहता है , और आपको जो हो चुका है उसे याद रखने की चुनोती भी होती है बिलकूल इस चल चित्र के नायक की तरह ..जिसे १५ मिनिट से ज़्यादा कुछ याद नही रहता। इस तरश निर्दशेक ने एक लॉजिकल फ्लो बाँया है हर सीन अपने आप मे पूर्ण है और आपको ऐसा नही लगता की कुछ चीज़े समाज़ नही आ रही .. इस बात का ध्यान रखा गा है की हर सीन अपने आपमे अर्थपूर्ण हो ..दूसरी बात ये है की अंत मे कुछ नायक के दिमाग़ की तरह आपके दिमाग़ मे भी कुछ अनसुलझे प्रश्न रह जाते है.. पेर कभी लगता है की आपको पता है .. आपके दिमाग़ को एक दम ज़ोर डालने पर आप कुछ प्रश्नो के उत्तर