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Showing posts from September, 2008

अकेला मन

अकेलापन , होता क्या है . जब कोई साथ हो तो भी तो अकेले हम है , साथ और अपनेपन से केवल एक अहसास होता है , की कोई है जो परवाह करता है कोई है जो आपके सुख और दुःख बांटना चाहता है , सच्चे साथ में इसी लिए एक विश्वास होता , निस्वार्थ होने का विश्वास , भीतर देखो , कोई है , कोई नही सिर्फ़ तुम हो , शायद वो भी नही , बात यह है की अगर समझो तो सच्चा साथी तो मन है , मन ही साथी जो दुःख में अकेलेपन का अहसास है करता और सुख में साथ का और अपने पन का अहसास करता है , मन ही सारे प्रश्न है करता , मन ही उनको पूरे करता , मन नियंरित हो तो जीवन ऐकाग्र्य अश्व के जैसे बढ़ता , मन रुलाता मन हंसाता , मन ही सारे मेल करता , मन है विश्वास , मन है कनक , जो समजता वाही आगे बढ़ता जय पारा जय , लाभ और हानि , मन बनाये सारी कहानी , मन है भोला मन है चंचल , मन निर्मल ये संतो की वाणी मन ही राम , मन ही कुरान , मन ही सूरज मन ही चाँद , धनसंपदा से अधिक संपन्न वो जिस का मन प्रसन्नता की खान , मन की trishna मन की शान्ति लाख धन से ना मिलती , मन करता , मन है कर्म का उद्गम ,मन से ही मुक्ति है मिलती

मेला

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हर चहरे पर चहरा है , हर हँसी पर में छुपी उदासी है हर साथी का साथ है सौदा जिसकी कीमत खासी है साथ केवल पीड़ा देता है पर ये दुनिया का मेला है मेले की हर बात निराली उसमे कई खेल तमाशे है, जीवन भी मेले जैसा है, पर इसके खेल सताते है दुखी सा है मन , अजब सा परेशान है तन मन थोडी सी है कुछ हल चल , पर खोया है वो बीता अपनापन आसपास बहौत है लोग पर , नज़र ना आए साथ है कौन , खोये अपने भी भीड़ में , अनजान हो गए सब है मौन, अधुरा , अनमना सा , कुछ खाली कोई कोना इस मन में , दे रहा टीस , पीड़ा भी , कुछ पानी भी आया इन आँखों में , पता नही ये पानी है या आंसू , फर्क क्या है दोनों में , शायद पीछे कोई पीड़ा तो है पर पता नही वो क्या है और नही पता क्यो है सब ऐसा , लगता बिखरा बिखरा सा , खोया में हु , या खो गए वो जो अहसास देते थे कुछ अपना सा, जिस पहेचानी दुनिया जिसको देखा समझा था , अब उसकी पहेचान भी अनजानी है , अपनी परचाई समझ जिसे रखा साथ में , अब वो मुझसे ही बेगानी है यादें भी तो नही लगती अपनी , वो भी बहौत पुरानी है , और मुझे यादों पर भी शक है , वो सच थी या फ़िर बेमानी है !