अकेला मन
अकेलापन , होता क्या है . जब कोई साथ हो तो भी तो अकेले हम है , साथ और अपनेपन से केवल एक अहसास होता है , की कोई है जो परवाह करता है कोई है जो आपके सुख और दुःख बांटना चाहता है , सच्चे साथ में इसी लिए एक विश्वास होता , निस्वार्थ होने का विश्वास , भीतर देखो , कोई है , कोई नही सिर्फ़ तुम हो , शायद वो भी नही , बात यह है की अगर समझो तो सच्चा साथी तो मन है , मन ही साथी जो दुःख में अकेलेपन का अहसास है करता और सुख में साथ का और अपने पन का अहसास करता है , मन ही सारे प्रश्न है करता , मन ही उनको पूरे करता , मन नियंरित हो तो जीवन ऐकाग्र्य अश्व के जैसे बढ़ता , मन रुलाता मन हंसाता , मन ही सारे मेल करता , मन है विश्वास , मन है कनक , जो समजता वाही आगे बढ़ता जय पारा जय , लाभ और हानि , मन बनाये सारी कहानी , मन है भोला मन है चंचल , मन निर्मल ये संतो की वाणी मन ही राम , मन ही कुरान , मन ही सूरज मन ही चाँद , धनसंपदा से अधिक संपन्न वो जिस का मन प्रसन्नता की खान , मन की trishna मन की शान्ति लाख धन से ना मिलती , मन करता , मन है कर्म का उद्गम ,मन से ही मुक्ति है मिलती