अपने अपने मदिरालय

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'

क्या समझे , नही नही में कोई प्रवचन नही दे रहा हु ,, की बच्चन साहब का कहना ये है की अगर जीवन में एक राह चलोगे के तो आपने जीवन के सपने को पा सकते है
पर में तो बता रहा हु की शयद उस समय भी परिस्थितिया कुछ ऐसी होंगी जैसी की आज है। गाँधी के इस देश में सारी राहे किसी ना किसी मधुशाला में ही जा कर ख़तम होती है, चारो और मधुशालाये ही है। चाहे वों गन्ने के रस की ही क्यो ना हो पर मधुशाला तो है,
कहेने का मतलब ये है की हर व्यक्ति कही भी जाए प्हुचाता मधुशाला ही है,

चलो पॉइंट पर आता हु, शायद आप बोलेंगे की पागल हो गया है ये आदमी तो ,, पर नही लोग सब और मस्त है , क्या हो रहा है चारो और कोई मतलब नही बस अपन घर पहुँच जाए काफ़ी है .....

Comments

sona said…
sometimes i also feel like this..

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