मैं यहाँ तू वहाँ , जिन्दगी है कहाँ !- बागबान
मैं यहाँ तू वहाँ , जिन्दगी है कहाँ ! तू ही तू है सनम , देखता हूँ जहाँ ! नींद आती नही , याद जाती नही ! बिन तेरे अब , जिया जाये न ! मैं यहाँ तू वहां , जिन्दगी है कहाँ ! वक़्त जेसे , ठहर गया है यहीं ! हर तरफ , एक अजब उदासी है ! बेकरारी का , ऐसा आलम है ! जिस्म तन्हा है , रूह प्यासी है ! तेरी सूरत अब एक पल , क्यूँ नजर से हटती नही ! रात दिन तो कट जाते हैं , उम्र तन्हा कटती नही ! चाहके भी न कुछ , कह सकूँ तुजसे मैं ! दर्द केसे , करूं मैं बयाँ ! मैं यहाँ तू वहाँ , जिन्दगी है कहाँ ! जब कहीं भी आहट हुई , यूँ लगा के तू आ गया ! खुस्भू के झोंके की तरह , मेरी सां से महका गया ! एक वो दौर था , हम सदा पास थे ! अब तो हैं , फासले दरमियाँ ! मैं यहाँ तू वहाँ , जिन्दगी है कहाँ ! बीती बातें याद आती हैं , जब अकेला होता हूँ मैं ! बोलती है खामोशियाँ , सबसे छुपके रोता हूँ मैं ! एक अरसा हुआ मुश्कुराए हुए , आसुओं में भरी दस्स्तान ! मैं यहाँ तू वहाँ , जिन्दगी है कहाँ ! तू ही तू है सनम , देखता हूँ जहाँ ! नींद आती नही , याद जाती नही ! बिन तेरे अब , जिया जाये न !