पी रहा हूँ की पीना भी एक आदत है

फिराक गोरख पुरी साहब ने एक शेर लिखा था ,

मैं चल रहा हूं कि चलना भी एक आदत है,
ये भूल कि ये रास्ता किधर को जायेगा।

हम सब के साथ ऐसा ही होता है , हम चलते जाते है दिशाहीन से क्योकी हम केवल चलना चाहते है कही पहुंचना नही , या फ़िर जहा पहुँचते है वों मंजील नही होती,

खेर मेरे एक दोस्त जीतेन्द्र जी ने इसी शेर में कुछ रचनात्मक तबदिलियाकर के इसे अपने रंग में ढाला कर कुछ पंक्तयां दी थी जिसे हमलोगों ने कुछ और लाइन मिला दी...

मैं पी रहा हूँ की पीना भी एक आदत है,
यह भूलकर की यह मय कहाँ ले जायेगी

की पी के संभालना ही मेरी शराफत है
यह भूलकर की यह गंध देर तलक आएगी

की गिर कर भी कहता हु होंश में हु मैं

यह आदत तो अब जाते जाते ही जायेगी

लोग याद भी करते है मरने के बाद

जीते जी तो दुनिया बड़ी सताएगी

इसी लिए होश में रहना नहीं चाहता हु मैं
होंश में आते ही ये दुनिया बदल जायेगी

Comments

Unknown said…
lines are really good n understood when read second time.....
....Ye pal hai wahi, jis mein hai chhupi Koyi ek sadi, saari zindagi
Tu na poochh raaste mein kaahe
Aaye hain is tarha do raahein
Tu hi toh hai raah jo sujhaaye
Tu hi toh hai ab jo ye bataaye
Chaahe toh kis disha mein jaaye wahi des.

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