सफ़र जारी है और मन्ज़िल निकल गई

सफ़र जारी है और मन्ज़िल निकल  गई,
महोब्बत तो हो गई पर उमर निकल गई,

जाम भी खाली है और महफ़िल भी है उदास
मैखाने का क्या कसूर जब साकी की खबर नहीं

याद थी वो ग़ज़ल, अब तो वो भी बिसर गई,
होठो पर तो थी अभी अब जाने किधर गई

जहाँ जाने को पैर बढ़ जाते थे आपे आप
अब वो गली तॊ है, पर उसमे कोई घर नहीं

दुनिया में करता है कोई मुझ से भी महोब्बत,
मुझे क्या मालुम मुझे कोई खबर नहीं

Comments

Popular posts from this blog

आज कल

ग़ालिब के मनपसंद शेर

मैं यहाँ तू वहाँ , जिन्दगी है कहाँ !- बागबान