नव रूप
नई नई भाषा है,
नये नये रूप है,
इस जग मे उठते हुए,
ऐसे कई स्वरूप है
मन एक है
जान एक है,
बाकी मिथ्या
और झूट है,
इंसानियत को पहचानो
वरना, आपस मे ही फुट है,
एक समय ऐसा भी होगा,
भेद भाव ना होंगी कोई,
मानव धर्म एक ही होगा,
जैसे माला मे पिरोए मोती
नये नये रूप है,
इस जग मे उठते हुए,
ऐसे कई स्वरूप है
मन एक है
जान एक है,
बाकी मिथ्या
और झूट है,
इंसानियत को पहचानो
वरना, आपस मे ही फुट है,
एक समय ऐसा भी होगा,
भेद भाव ना होंगी कोई,
मानव धर्म एक ही होगा,
जैसे माला मे पिरोए मोती
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