यादों की उलझन


यादों की उलझन

मैने कही पढ़ा था की इंसान हमेशा अतीत मे जीता है, उसमे और सोचने पर मैने कई बाते पाई, और अगर हम ठीक से विचार करे तो बात सही भी है.आज जो हुआ वो चाहे अच्छा हो या बुरा पर कल याद ज़रूर करेंगे, और ज़्यादा पूरनी यादें थोड़ी भीनी की महक देती है और ज़्यादा अच्छी लगती है एक दम पुराने आचार की तरह, हम हमेशा यादों को किसी किताब मे रखे पेज मार्कर की तारक अपने जहाँ मे बसा लेते है, और यही यादे आपके सोचने कॅया तरीका अवरुद्ध करती है, और कभी कभी आपके विकास को भी प्रभावित करती है, ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है.कोई भी व्यक्ति भविष्य का ऐसे नही सोचता पर ये तो कर सक ता है की वर्तमान मे जीए. आज को जीना ही सच्चा जीवन है.किसी ने शायद इसी लए कहा है ""बीती ताही बिसार दे , आगे की सुध ले" इस कहावत को हम केवल बुरे कल के लए लेते है. अच्छे और सुहाने दीनो के लए भी लागू होती है यही बात.






ये गीत शायद इसी बारे मे कुछ कहता है...

करोगे याद तो, हर बात याद आयेगी
गुज़रते वक़्त की, हर मौज ठहर जायेगी
करोगे याद तो ...ये चाँद बीते ज़मानों का आईना होगा
भटकते अब्र में, चहरा कोई बना उदास राह कोई दास्तां सुनाएगी
करोगे याद तो ...बरसता-भीगता मौसम धुआँ-धुआँ होगा
पिघलती शमों पे दिल का मेरे ग़ुमां होगा
हथेलियों की हिना, याद कुछ दिलायेगी
करोगे याद तो ...गली के मोड़ पे, सूना सा कोई दरवाज़ा
तरसती आँखों से रस्ता किसी का देखेगानिगाह दूर तलक जा के लौट आएगी
करोगे याद तो ...






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